जो मिला वो समेटते गए
अपना घर बनाते गए
ना तब मौसम था बारिश का
और न हुआ करती थी बेमौसम बारिश
जब बारिश हुई तो पता चला
समेटा था वो मिट्टी थी
स्वभाव था उसका पानी में घुल जाना
घुलना था सो घुल गई,
पानी के साथ बह गई
बारिश जो थी वो थम गई
उसे जाना था वो चली गई
जाते जाते ले गई
पोटली कुछ सपनोकी और कुछ अरमानों की
हम क्या करते,
न कोई आसरा था,
न था कोई सहारा
जो जाना था वो चला गया
वोभी कहा अपना था
जोभी था वो पराया था
न कुछ लेकर आए थे,
न कुछ लेकर जायेंगे
फिर उठे खड़े हुए
क्या मिलता हैं वो टटोलने लगे
जो मिला वो समेटते गए
अपना घर बनाते गए
ना तब मौसम था बारिश का
और न हुआ करती थी बेमौसम बारिश
- मोहिनीराज भावे
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